उत्तर प्रदेश में भाजपा के दिग्गज नेताओं के मध्य खींचतान की खबर मिल रही है।ये नेता दिल्ली दरबार में भी अपनी फरियाद लगा रहे हैं।दरअसल यह पूरा मामला प्रदेश कार्यकारिणी में अपने चहेतों और विश्वासपात्रों की जगह पक्की करने को लेकर है। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा लटक गयी अन्यथा यह घोषणा नवरात्रि में हो गई होती।भाजपा नेता कार्यकारिणी के घोषणा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।उत्तर प्रदेश में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी के दिग्गज नेता अपने खास और चहेतों की जगह फिक्स करने का प्रयास कर रहे हैं।
भाजपा सूत्रों के अनुसार नयी कार्यकारिणी बनने में सबसे बड़ा बदलाव क्षेत्रीय अध्यक्षों को लेकर है।ऐसी संभावना बतायी जा रही है कि काशी,अवध,कानपुर और पश्चिम क्षेत्रों के अध्यक्ष बदले जा रहे हैं।वैसे भी अवध के अध्यक्ष उपचुनाव में विधायक बन गये हैं।बाकी के तीन क्षेत्रों के अध्यक्ष प्रमोशन पाकर प्रदेश की टीम में स्थान पा रहे हैं।काशी के महेश श्रीवास्तवऔर कानपुर के अध्यक्ष मानवेन्द्र सिंह प्रदेश उपाध्यक्ष बनाये जा रहे हैं तथा पश्चिम केअध्यक्ष अश्वनी त्यागी प्रदेश महामंत्री बनाये जा रहे हैं।बताया जा रहा है कि अश्वनी त्यागी को कुछ बड़े लोगों का बरदहस्त प्राप्त है।
सूत्रों के अनुसार एक बात को लेकर दिग्गज नेताओं के मध्य आम सहमति बन गई है कि बर्तमान में जिन पदाधिकारियों को लाभ का कोई दूसरा पद मिल गया है, उन्हें नई टीम में स्थान नहीं दिया जाय।पदाधिकारियों में जहां एक ओर प्रदेश महामंत्री द्वय अशोक कटारिया एवं नीलिमा कटियार को योगी सरकार में मंत्री बनाया गया है,वहीं दूसरी ओर प्रदेश उपाध्यक्ष जे पी यस राठौर को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड काअध्यक्ष बनाया गया।अन्य उपाध्यक्ष यशवंत सैनी, नबाब सिंह नागर व बी यल वर्मा तथा प्रदेश मंत्री कौशलेंद्र सिंह व धर्मवीर प्रजापति को भी किसी न किसी निगम या बोर्ड से नवाजा गया है।
भाजपा सूत्रों के अनुसार परिस्थितियों के आधार पर दिग्गज नेताओं में कई प्रकार के मत बन गए हैं।निर्णय लेने वाले नेताओं में कुछ का विचार है कि जो लोग विधानसभा के सदस्य हैं, उनको चुनाव के पूर्व क्षेत्र में समय देना होगा अतः ऐसे लोगों को पार्टी का पद नहीं देना चाहिए क्योंकि वे लोग पार्टी को समय नहीं दे पायेंगे।वहीं दूसरी ओर कुछ अन्य नेताओं का मानना है कि जो पदाधिकारी लोकसभा, राज्यसभा या विधानपरिषद के सदस्य बन गए हैं उन्हें भी पद नहीं देना चाहिए क्योकि उनके पास कार्य करने के लिए एक अवसर तो है ही।वैसे भी भाजपा में एक ब्यक्ति एक पद की परम्परा रही है।
यदि सूत्रों की मानें तो भाजपा के महारथियों में से कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जो लोग तीन बार या इससे अधिक बार प्रदेश पदाधिकारी रह चुकेहैं उन्हें स्वेच्छया पद त्याग कर चुनावी राजनीति में में जाना चाहिए जिससे कि नए कार्यकर्ताओं को पद लेकर काम करने का अवसर मिले।यह स्वयमसिद्ध है कि नए लोगों में कार्य के प्रति अधिक उत्साह और उमंग रहता है।ऐसा मत रखने वालों का यह मानना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में सरकार विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ेगा इसलिए पार्टी को ऊर्जावान पदाधिकारियों की आवश्यकता होगी।
अब देखना मौजू होगा कि उत्तर प्रदेश भाजपा का ऊंट किस करवट बैठता है।