कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार दिल्ली की हिंसा को रोकने में नाकाम रही, जिस हिंसा में कम से कम 43 लोगों की मौत हुई है और सैकड़ों घायल हैं । यह हिंसा विवादास्पद कानून नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच पत्थरबाजी से शुरू हुई और कई लोगों की जान ले गई। मुसलमान इस कानून का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि मोदी सरकार इस कानून के जरिए मुसलमानों के साथ भेदभाव करेगी।
यह डर कुछ तो विपक्षी दलों ने पैदा की है और कुछ स्वयं मुस्लिम नेताओं ने अपने लोगों के बीच बांट दिया है। यह हिंसा तब भड़काई गई जब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर आए थे। स्पष्ट है कि दंगे की योजना बनाने वालों ने मोदी के साथ साथ भारत की छवि को भी बड़ा धक्का पहुंचाया है। इस दंगे से यह सवाल एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया है कि क्या मोदी सरकार के प्रति मुसलमानों में विश्वास नहीं है। क्या 20 प्रतिशत आबादी इस सरकार के खिलाफ है? या सरकार इन 20 प्रतिशत लोगों की परवाह नहीं करती?
भाजपा की जो छवि मुसलमानों के दिमाग में बैठाई गई है वह जल्दी जाने वाली नहीं है। कोई नहीं कहेगा कि मोदी सरकार में सामाजिक या आर्थिक रूप से मुसलमान पिछले सालों में बुरी स्थिति में चले गए हैं या किसी केंद्रीय योजना में उनके साथ अल्पसंख्यक होने के नाते भेदभाव किया गया है। हां मुसलमानों के मनोबल को तोड़ कर उनकी वोट की ताकत को फिर से प्राप्त करने में मुसलमानों को भाजपा से और दूर ले जाने की कोशिश जरूर कामयाब होती दिखाई दे रही है।
हालांकि हमेशा से कांग्रेस और अन्य विरोधियों द्वारा सवाल खड़े किए जाते रहे कि क्या मोदी सरकार मुसलमानों के हितों के लिए काम करती है? जबकि नरेंद्र मोदी की सरकार ने मुस्लिमों के अंदर जनसंघ के जमाने से ही बैठे डर हटाने और उनमें आत्मविश्वास भरने की भरपूर कोशिश की है। सबका साथ, सबका विकास का मोदी का नारा उसी कोशिश की कड़ी थी। प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद ही मोदी ने कहा- जाति, धर्म और रंग के आधार पर भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं उठता। हम इसके बारे में सोच भी नहीं सकते।
मुस्लिमों में जागरुकता की कमी है। नागरिकता संशोधित कानून को लेकर मुसलमानों की चिंता को दूर करने की भी पूरी कोशिश की गई। प्रधानमंत्री समेत तमाम मंत्रियों व भाजपा नेताओं ने कहा- इस नए कानून से भारत के नागरिक को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी। जो मुसलमान भारत के नागरिक , उसकी नागरिकता समाप्त करने की बात तो दूर, उंगली से भी उसे कोई छू नहीं पाएगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो यहां तक कहा कि – मुसलमान जिगर का टुकड़ा है.। उन्होंने दिल्ली चुनाव के दौरान रैलियों में भी कहा- मुसलमान भारत का नागरिक और हमारा भाई है। फिर भी मुसलमान सरकार पर भरोसा करने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं?
किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करने के लिए बेचैन कांग्रेस सीएए, एनसीआर और एनपीआर को अवसर मान रही है । कांग्रेस में इस बात का मलाल है कि कैसे 2019के चुनाव में भाजपा मुस्लिम बहुल आबादी वाली 50 प्रतिशत से अधिक सीटें जीतने में कामयाब रही। जबकि प्रधानमंत्री मोदी की नीतियां जिनमें तीन तलाक की समाप्ति के साथ साथ शौचालय, गैस सिलेंडर, बैंक खाते और नए मकान ने मुस्लिम महिलाओं के दिन बदल दिए। सरकारी योजनाओं के फायदे पहुंचाने में कोई भेदभाव नहीं किया गया। मोदी सरकार ने मदरसों में शिक्षा को लेकर बड़ा फैसला किया, मदरसों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ा- हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, कंप्यूटर की भी पढ़ाई शुरू कराई।
प्रधानमंत्री मोदी ने अल्पसंख्यकों के विकास के लिए कई नायाब स्कीम चलाए, विशेषकर युवाओं के लिए। पांच साल में 5 करोड़ अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के लिए प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति, इसमें से करीब ढ़ाई करोड़ यानी 50 प्रतिशत छात्राएं शामिल होंगी। दस्तकार, शिल्पकारों व कारीगरों को रोजगार से जोड़ने और बाजार मुहैया करवाने के लिए पांच साल में 100 से अधिक हुनर हाट का आयोजन किया जाएगा। गरीब नवाज कौशल विकास केंद्र, उस्ताद, नई मंजिल, नई रौशनी, सीखो और कमाओ, पढ़ो परदेस, प्रोग्रेस पंचायत, बहुउद्देशीय सद्भाव मंडप, प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्री कार्यक्रम, बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम, बेगम हजरत महल छात्रा छात्रवृति सहित अन्य विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों से हर जरूरतमंद अल्पसंख्यक की जिंदगी में खुशहाली सुनिश्चित करने का प्रभावी प्रयास किया गया है
तो क्या कथित हिंदू राष्ट्रवादियों की धमकियांे उनके द्वारा मुस्लिमों पर हमले उत्पीड़न और हिंसा के लिए मोदी को ही जिम्मेदार माना जा सकता है? या इसके लिए वे मुस्लिम भी जिम्मेदार हैं जो कानून के खिलाफ जाकर भी धर्मांतरण करा रहे हैं गोहत्या में शामिल हो रहे हैं, बीफ की पार्टी कर रहे हैं। बहुसंख्यक समुदाय को चिढ़ाने वाले भी तो समाज में अशांति फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं।
यदि कुछ राज्यों में मुस्लिम उत्पीड़न की घटनाएं हुई भी है तो उसके लिए ठोस कानून की कमी या राज्य सरकारों की लापरवाही भी तो माना जा सकता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत मुसलमानों के रहने के हिसाब से यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। अमेरिकी संस्था युनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम की साल 2016 में आई एक रिपोर्ट मीडिया पर भी यह आरोप लगा कि यहां के चैनलों व अखबारों में मुसलमानों पर आतंकवादी होने, पाकिस्तान के लिए जासूसी करने, हिंदू औरतों का जबरदस्ती अपहरण, धर्म परिवर्तन करने, उनसे शादी करने का कुप्रचार होता है।
हां कुछ घटनाएं अप्रत्याशित हुई जिनसे मुसलमानों का डरना स्वाभाविक माना जा सकता है जैसे सितंबर, 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी के पास बिसाहड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक को घर में बीफ रखने के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला गया था- लेकिन क्या तब इसके लिए सत्तासीन समाजवादी पार्टी की को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए था। लेकिन उसके लिए भी भाजपा और मोदी को जिम्मेदार बताया गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने जब लगातार देखा कि जम्मू के उधमपुर में गोहत्या की अफवाह पर भीड़ ने एक ट्रक पर पेट्रोल बम फेंक दिया, जनवरी 2016 में मध्य प्रदेश में गोरक्षकों ने गोमांस रखने का आरोप लगाकर एक मुस्लिम दंपत्ति को बुरी तरह पीट दिया, राजस्थान के अलवर में पशु व्यापारी पहलू खान की मौत हो गई झारखंड के जमशेदपुर में भी कुछ इस तरह की ही घटनाएं हुईं, तो प्रधानमंत्री स्वयं सामने आए और गौरक्षक का तमगा लेकर घुमने वालों को जमकर लताड़ा। गुजरात के अपने एक कार्यक्रम में मोदी ने खुलकर कहा- जब मैं यहां साबरमती आश्रम में मौजूद हूं तो मैं अपना दुख और दर्द प्रकट करना चाहता हूं।
मोदी ने कहा, यह एक ऐसा देश है जहां चीटियों, कुत्तों, मछली को भोजन देने की परंपरा है। प्रधानमंत्री ने कहा, महात्मा गांधी और विनोबा भावे से ज्यादा किसी ने गोरक्षा और गाय की पूजा नहीं की होगी। उन्होंने हमें दिखाया कि कैसे गाय की रक्षा की जाती है। देश को उनका मार्ग अपनाना होगा। गौ-भक्ति के नाम पर लोगों की हत्या स्वीकार नहीं की जा सकती। समाज में हिंसा की कोई जगह नहीं है। क्या इस पर मुसलमानों को विश्वास नहीं करना चाहिए।
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