उपन्यासकार चेतन भगत अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं। वे इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर ब्लाॅग तक पर काफी सक्रिय हैं। विभिन्न अखबारों में उनके लेख छपते रहते हैं। उन्होंने सीएए और हिंदुत्व पर भी काफी कुछ लिखने की कोशिश की है। सेकुलरिज्म और हिंदुत्व को लेकर उनका भी नजरिया कमोवेश वही है, जो खुद को सेकुलरिस्ट कहलाने वालों की होती है। अंग्रेजी अखबार The Times Of India में हाल ही में ‘‘हिंदू नेशन’’ संभव नहीं विषय पर चेतन भगत का एक लेख प्रकाशित हुआ है। जिसमें उन्होंने तर्क दिया है कि मोदी सरकार लाख कोशिश करे भारत कभी भी एक हिंदू राष्ट्र नहीं बन सकता। हिंदुत्व को लेकर उनकी समझ को तर्कहीन और भ्रमित बताते हुए दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार नीलू रंजन ने अपने विचार रखें हैं।-
चेतन ने मान लिया है कि हिंदू धर्म ईसाई और इस्लाम की तरह एक पूजा पद्धति है। ईसा और मोहम्मद को नहीं मानने वाला ईसाई या मुसलमान नहीं हो सकता है। जबकि भगवान को नहीं मानने वाला भी हिंदू हो सकता है। इसका किसी भगवान या पूजा पद्धति से को संबंध नहीं है। चार्वाक हमारे ऋषि थे और बुद्ध विष्णु के अवतार ।
दूसरी बात, चेतन भगत ईसाई और इस्लाम शासन में दूसरे धर्मावलंबियों के साथ हुए बुरे बर्ताव और इसके कारण संघर्ष को अपने तर्क का आधार बनाते हैं । जबकि ऐतिहासिक सत्य है कि किसी हिंदू राजा ने धर्म के आधार पर कभी भी अपनी किसी प्रजा से भेदभाव नहीं किया। जब औरंगजेब और टीपू सुल्तान हिंदुओं और सिखों की हत्या कर रहा था, तब भी मराठा और सिखों के वर्चस्व वाले इलाक़े में एक भी मुसलमान को एक थप्पड़ तक नहीं मारा गया, मस्जिद तोड़ने की बात तो दूर है।सबसे अहम हिंदू एक मात्र समुदाय है, मस्जिदों और गिरजाघरों में भी उसी श्रद्धा के साथ जाता है, जितनी श्रद्धा से वह मंदिर में जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि हिंदू दुनिया का एकमात्र सेक्युलर धर्म है, जिसने दुनिया के सभी धर्मावलंबियों का दिल खोलकर स्वागत किया। यहाँ तक की ख़ुद ही मस्जिद और मंदिर बनाकर दिया।
समस्या कैरियर नहीं है। कैरियर भी तभी बना पाएँगे जब बचे रहेंगे। पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू युवाओं का कोई कैरियर नहीं है।
समस्या की जड़ में है आपस में बँटा हुआ हिंदू समाज। पिछले सत्तर सालों में देश में जिहादी तत्वों को संरक्षण देने वाला एक ऐसा इको सिस्टम खड़ा किया गया, जिसने हिंदुओं को जाति-भाषा-क्षेत्र के नाम पर आपस में लड़ाकर अपना वर्चस्व क़ायम रखने की हर साज़िश की। इस इको सिस्टम का क़ब्ज़ा मीडिया, जूडियशियरी, शिक्षा सभी जगह रहा। मुस्लिम-यादव और दलित-मुस्लिम समीकरण सत्ता का मास्टर-की साबित होता रहा। वामपंथियों ने नक्सलवाद के नाम पर हिंदुओं के बीच वर्ग संघर्ष के नाम पर जाति संघर्ष का प्रयोग किया, जो कई दशकों से देशके बड़े हिस्से में सफलता से चल रहा है। मैंने आजतक नहीं सुना है कि नक्सलियों ने किसी मुस्लिम ज़मींदार, बड़े कारोबारी या उद्योगपति को मारा हो या उसकी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया हो।
2014 में पहली बार हिंदुओं के बीच विभाजन की दीवार टूटती दिखी और 2019 में भी इसका असर दिखा। समस्या यह है कि पुराना इको सिस्टम किसी भी तरीक़े से हिंदुओं के बीच विभाजन क़ायम रखने के लिए छटपटा रहा है। पिछले कुछ सालों में कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में वह सफल भी रहा है। बड़ा एकजुट मुस्लिम वोट बैंक उसके काम को आसान कर देता है। इसीलिए वह मुसलमानों के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहता है।
इस इको सिस्टम के सामने सबसे बड़ी चुनौती मोदी है, जो हिंदुओं को एकजुट करने में कुछ हद सफल रहे हैं । दुनिया के एकमात्र सेक्युलर धर्म को कट्टरपंथी सांप्रदायिक करार देने की साज़िश ख़तरनाक है। 2008 से ही हिंदू आतंकवाद जैसे जुमले उछाले जा रहे हैं।मतदान केंद्रों, सड़कों, गलियों के साथ-साथ बौद्धिक धरातल तक यह लड़ाई जारी है। बौद्धिक जंग जीतने के बाद राजनीतिक विजय की नींव और पुख़्ता हो जाएगी।
एक बात और हिंदुओं पर हमला कई स्तरों पर होता आया है और हो रहा है। औरंगजेब और टीपू सुल्तान जो काम तलवार से कर रहा था, मोइनुद्दीन चिस्ती और हाजी अली वही काम प्यार से कर रहा था। इसका मुक़ाबला भी कई स्तरों पर किया जा रहा था। मराठा, राजपूत रजवाड़े और सिख युद्ध के मैदान में थे, तो तुलसीदास आम जनता की ज़ुबान में सहज रूप से हिंदू जीवन मूल्यों से जुड़े रहने की प्रेरणा दे रहे थे। शायद यही कारण है कि भारत की सनातन संस्कृति बची रह सकी।