सेलेक्टिव गवर्मेंट का खिताब लिए पाकिस्तान में सरकार चला रहे इमरान खान ने अब अपने सेलेक्टर के साथ ही एक नया मोर्चा खोल दिया है। पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक यह बता रहे हैं कि सेना के साथ अपने मतभेद दिखाने के पीछे इमरान खान के दो मकसद हैं- इससे या तो उन पर लगे यह दाग मिट जाएगा कि पाकिस्तान के मिलिट्री अधिकारियों के इशारे पर चलते हैं या फिर इस टकराव के कारण एक बार और पाकिस्तान में सैन्य तख्तापलट हो जाए और इमरान अपने तमाम असफलताओं से बच जाए और एक शहीद की भांति इस्लामाबाद से जा सके।
पाकिस्तान का मीडिया और वहां के राजनीतिक टीकाकार हैरान हैं कि आखिर क्यों कर इमरान खान ने उस विषय पर अपनी टांग अड़ाई है, जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। डीजी आईएसआई की तैनाती को लेकर जिस तरह की हरकतें इमरान कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि वह जानबूझ कर सेना को अपने पांव के नीचे लाते दिखाई देने की कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान की सेना का तो वहां राजनीतिक व्यवस्था में पूरा हस्तक्षेप है, लेकिन अभी तक किसी सिविल सरकार ने सेना के कामकाज में सीधे हस्क्षेप नहीं किया। फिर इमरान खान ने ऐसा क्यों किया?
कयास यह लगाया जा रहा है कि लगभग साढे़ तीन साल के शासन में इमरान ने पाकिस्तान का बेड़ा गर्क दिया है। आर्थिक रूप से पाकिस्तान कंगाल है और अब दीवालियेपन की तरफ बढ़ रहा है। कुटनीतिक तौर पर पाकिस्तान दुनिया में मजाक बना हुआ है। तालिबान को अफगानिस्तान में सत्ता दिलाने और उसे फिर दुनिया से मान्यता दिलाने के इमरान के अभियान ने पाकिस्तान पर कई खतरे की भूमिका बना दी है। उनमें एफएटीएफ की ब्लैक लिस्ट में शामिल किए जाने से लेकर इस्लामाबाद के खिलाफ अमेरिका और यूरोप द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के भी अंदेशा हैं।
इमरान खान के बचकाने फैसले को लेकर पाकिस्तान के लोग हैरान है। तीन साल के शासन के बाद भी विपक्ष को चोर डाकू कहते रहना। किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे के विषय पर विपक्ष को भरोसे में नहीं लेना। तमाम नए कानून राष्ट्रपति के अध्यादेश के जरिए लागू करना। पाकिस्तान के हजारों लोगों को मार देने वाले तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के साथ इमरान की बातचीत और आम माफी की पेशकश, नेशनल एकांटिबिलिटी ब्यूरो यानी नैब के चेयरमैन को बनाए रखने के लिए अजीब कानून लाना और पूरी दुनिया में तालिबान की हिमायत करना जैसे इमरान के फैसले से वहां की अवाम अवाक है।
इमरान सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री फौव्वाद चौधरी ने यह दावा किया है कि मौजूदा सरकार और पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व के बीच जितना प्रगाढ़ संबध है उतना कभी पाकिस्तान की अन्य सरकार के नहीं थे। लेकिन इस दावे की कलई खुद पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी ही खोलते हैं। हाल ही में आईएसआई के नये प्रमुख की नियुक्ति को लेकर जिस तरह बाजवा और इमरान खान आमने सामने आए हैं, वह साबित करता है कि सब ठीक नहीं है। इमरान का टीटीपी के साथ बातचीत की घोषणा भी मिलिट्री लीडरशिप को रास नहीं आई और आर्मी पहले की तरह ही टीटीपी के खिलाफ वजीरस्तान में कार्रवाई करती आ रही है। माफी की पेशकश इमरान सरकार की आतंकवाद निरोधी नीति पर सवाल उठाती है।
पाकिस्तान के थिंक टैंक यह मानने लग है कि पीटीआई सरकार धीरे धीरे संवैधानिक संस्थानों को ध्वस्त करती जा रही है। पाकिस्तान चुनाव आयोग यानी ईसीपी को विवादास्पद बना दिया गया है। पाकिस्तान के मंत्री खुलेआम चुनाव आयोग के प्रमुख को धमकियां दे रहे हैं। चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए चुनाव नियमों में सुधार के लिए विपक्ष के साथ बैठने के बजाय, पीटीआई सरकार चुनावी प्रक्रिया में एकतरफा बदलाव करने की कोशिश कर रही है। ईसीपी की आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए प्रधानमंत्रीने अगले चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल का ऐलान भी कर दिया है।
अधिक दबाव वाली समस्याओं जैसे आर्थिक मंदी और आसमान छूती मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सरकार विभाजनकारी रास्ते पर चल रही है। इस बीच, देश तेजी से बदलती क्षेत्रीय भू-राजनीति के साथ गंभीर बाहरी नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है। लेकिन स्थिति की गंभीरता को लेकर सरकार को कोई आभास नहीं होता दिख रहा है । दिलचस्प बात यह है कि इस तरह की चुनौतीपूर्ण चुनौतियों का सामना करने के बजाए इमरान खान नैतिकता और इस्लामी इतिहास की दुहाई दे रहे हैं। पाकिस्तान में हाल ही में एक नया इस्लामी प्राधिकरण स्थापित किया गया है जो देश की शिक्षा प्रणाली और मीडिया की निगरानी करेगा। इमरान की इन उलूल जूलूल हरकतों से पाकिस्तान तबाही की कगार पर खड़ा है।