भारत ने चीन के खिलाफ मुहिम की अगुवाई की
चारों तरफ से चीन घिर चुका है , यकीन मानिए जिस तरह से पूरी दुनिया चीन के खिलाफ उठ खड़ी हुई है , उससे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अपने पद पर बने रहना मुश्किल है ।
क्योंकि चीन के पास अब खुद को बचाने का विकल्प बहुत सीमित रह गया है । ईरान, पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया और कुछ अफ्रीका के देशों के अलावा चीन के साथ कोई नहीं है । चीन एक के बाद एक वैसे कदम उठा रहा है जिसमें उसकी आर्थिक और सामरिक शक्ति नष्ट होकर रहेगी ।
भारत ने चीन के खिलाफ मुहिम की अगुवाई की है । गलवान घाटी में भारतीय सेना पर चीनी सैनिकों का हमला चीन के लिए काल बन गया है। न सिर्फ भारतीय सेना चीन को नेस्तनाबूत करने के लिए तैयार बैठी है , बल्कि भारत का एक-एक नागरिक आर्थिक रूप से चीन की रीढ़ तोड़ने के लिए कृत संकल्प दिख रहा है ।29 जून को भारत ने चीन के 59 मोबाइल ऐप्प पर रोक लगा दी । चीन का बिलबिलाना अब तय है ।
यही हाल अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन की है। अमेरिका चीन की कंपनियों को अपने यहां के शेयर बाजार से डीलिस्ट करने के लिए तैयारी में है । यदि चीन की कंपनियां अमेरिका से डीलिस्ट हो जाती है तो फिर चीन की अर्थव्यवस्था के सामने अंधेरा छाना लाजमी है ।
विशेषज्ञ भी बताते हैं कि चीन का अरबों डॉलर का विदेश निवेश अमेरिका खो सकता है, लेकिन भारत की तरह अमेरिकी प्रशासन भी चीन को उसकी औकात दिखाने के लिए तैयार बैठा है । अमेरिकी कांग्रेस कभी भी चीनी कंपनियों को अमेरिकी बाजार से ब्लैक लिस्ट कर सकती है ।
हांगकांग के मामले में ब्रिटेन चीन को बहुत बड़ा धक्का पहुंचा सकता है। 1997 में चीन को हांगकांग को सौपतें समय ब्रिटेन ने वचन लिया था हांगकांग की संप्रभुता और स्वायत्तता बरकरार रहेगी । लेकिन अमेरिकी कंपनियों पर अंकुश रखने के लिए चीन ने वहां पर नेशनल सिक्योरिटी लॉ लाने का जो फैसला किया है, उससे हांगकांग के साथ चीन भी बर्बाद होने की कगार पर पहुंच गया है। हांगकांग में पहले भी 6 लाख लोगों ने अपने देश को छोड़ दिया था , जब इंग्लैंड हांगकांग को चीन को सौपा था ।
अब ब्रिटेन ने खुलेआम घोषणा की है कि ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज के नाम पर हांगकांग के ब्रिटिश पासपोर्ट धारी लोग 1 साल तक की पढ़ाई या नौकरी कर सकते हैं । हांगकांग की संप्रभुता यदि बरकरार ना रही तो अमेरिका ने जो सहूलियतें दी हैं , वो किसी भी समय खत्म हो सकती है।
ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच संबंध इस कदर ब्रेकिंग प्वाइंट पर पहुंच गया है कि दोनों देश जासूसी का आरोप एक दूसरे पर लगा रहे हैं। दोनों देश की सिक्योरिटी एजेंसी लगातार रेड कर रही हैं । कनाडा भी चीन के खिलाफ तन कर खड़ा हुआ है । कहने का तात्पर्य है कि पूरी दुनिया की दुश्मनी चीन मोल नहीं सकता , समझौता करना ही पड़ेगा । चाहे वह शुरुआत भारत से करें या अमेरिका से , करना ही पड़ेगा । शी जिनपिंग को इस्तीफा देना पड़ेगा