लद्दाख की गैल्वेन घाटी में चीन के साथ हमारा गतिरोध जारी है। चीन अपनी ओर से सैनिकों की संख्या के साथ साथ सैन्य साजों सामान भी बढ़ाता जा रहा है। भारत भी उसी अनुपात में अपनी तैयारियां कर रहा है। हालांकि भारत की ओर से कोई भी अवांछनीय बात नहीं की गई है और ना कोई अनर्गल बयान ही सरकार की ओर से आया है। लेकिन चीनी मीडिया और चीनी विषेशज्ञ लगातार बड़बोलेपन का सबूत दे रहे हैं।
सोंची समझी कार्रवाई
भारतीय सीमा के साथ तनाव बढ़ाने की चीन की यह सोंची समझी चाल है । डोकलाम गतिरोध के बाद चीन की यह सबसे मजबूत सैन्य प्रतिक्रिया है। भारत गैल्वेन घाटी क्षेत्र में अपनी सीमा रेखा के अंदर ही सड़क निर्माण कर रहा है, जबकि चीन यह कह रहा है कि भारतीय पक्ष ने अपनी यह रक्षा किलेबंदी चीनी सीमा रक्षा सैनिकों की सामान्य गश्ती गतिविधियों को बाधित करने के लिए की है।
गैल्वेन घाटी का कुछ हिस्सा चीनी क्षेत्र में है, लेकिन अभी तक स्थानीय सीमा नियंत्रण की स्थिति बहुत स्पष्ट थी। अचानक भारत के निर्माण पर आपत्ति और उसके बाद झड़प चीन द्वारा भारत की सीमा और समझौतों का गंभीर उल्लंघन है। यह भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता पर भी आघात है।
धौंस व धमकी
चीन भारत पर दबाव बनाने के लिए लगातार अपने सैनिकों का जमावड़ा बढ़ा रहा है और भारत पर धौंस जमाने के उद्देष्य से अपनी सैन्य ताकतों की बड़ाई भी कर रहा है। चीन कम्युनिस्ट पार्टी का अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ शंघाई एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस के एक रिसर्च फेलो हू जिहियोंग के हवाले से कहता है – गैल्वेन वैली डोकलाम जैसी नहीं है, क्योंकि यह चीन के दक्षिणी शिनजियांग के अक्साई चीन क्षेत्र में है, जहां चीनी सेना का काफी मजबूत और परिपक्व ढाँचा है। इसलिए, यदि भारत संघर्ष बढ़ाता है, तो भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। चीन यह धमकी देना भी नहीं भूल रहा है कि 1962 की तरह ही भारत का हश्र होगा।
ग्लोबल टाइम्स लिखता है – 1962 में चीन के साथ भारत ने जब युद्ध किया तो चीन ने सीमा युद्ध में भारत को कुचल दिया था। 1962 में फिर भी चीन और भारत की राष्ट्रीय ताकत आपस में तुलनीय थी। आज तो चीन का जीडीपी भारत की तुलना में लगभग पांच गुना है।
चीन की बौखलाहट
दुनिया इस बात पर हैरान है कि आखिर चीन अचानक भारत के खिलाफ युद्ध जैसी तैयारी क्यों कर रहा है। जानकारों का मानना का है कि कोविड 19 महामारी को पूरी दुनिया में फैलाने का आरोप झेल रहा चीन दुनिया की तव्वजों वहां से हटाकर कहीं और करना चाहता है। इसलिए कभी वह अमेरिका के साथ युद्ध की तैयारी की बात करता है, कभी ताइवान और हांककांग में टकराव बढ़ाने वाले फैसले करता है। भारत के साथ नया फ्रंट खोलने के पीछे भी उसकी डायवर्जनरी टैक्ट ही है।
आर्थिक प्रतिस्पर्धा भी एक कारण
भारत के साथ विवाद पैदा करने और उसे लंबा खींचने के पीछे चीन का एक और उद्देष्य है और वह यह कि कोविड 19 के कारण जिस तरह से यूरोप, अमेरिका और जापान की कंपनियां चीन को छोड़कर भारत में जाने की तैयारी कर रही है, उससे चीन को यह डर सता रहा है कि कहीं उसका आर्थिक प्रभाव खत्म ना हो जाए। पहले तो चीन ने दुनिया को यह बताने की कोशिश की कि भारत उसका विकल्प नहीं हो सकता। कोरोना के कारण भारत का सप्लाईचेन सिस्टम पूरी तरह बैठ गया है। इसी संबंध में चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स’ लिखता है- अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निवेश बैंक गोल्डमैन सच्स ने भविष्यवाणी की है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी का अनुभव होगा, क्योंकि पहले से ही कमजोर भारत में देशव्यापी लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को और नीचे खींच लिया है। यह तीसरी बार है जब गोल्डमैन सच्स ने 2020-21 के लिए भारत के आर्थिक विकास के लिए अपने पूर्वानुमान को और कम करके दिखाया है।
स्पष्ट है कि चीन भारत की आर्थिक तरक्की में अपनी कमजोरी देखता है और इसलिए भारत में उथल पुथल मचाने का षडयंत्र रच रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से डर
लेकिन चीन यह भी मानता है कि मोदी प्रशासन की लोकप्रियता काफी है और इससे सरकार को आर्थिक चुनौतियों से उबरने में मदद मिलेगी।चीन के एक सैन्य विशेषज्ञ और टीवी टिप्पणीकार, सॉन्ग झोंगपिंग ने ग्लोबल टाइम्स को दिए अपने वक्तव्य में कहा भी है कि य़द्यपि भारत चीन को उकसाएगा नहीं लेकिन यह दोनों देशों के बीच एक लंबा मुद्दा होगा।
अमेरिका से संघर्ष में भारत को दूर रखने की चीन का प्रयास
भारत के अंदर आकर सड़क निर्माण में अडंगा डालने के पीछे चीन का एक और मकसद यह हो सकता है कि वह भारत पर डबाव डाले कि अमेरिका के साथ चल रहे टकराव में भारत राष्ट्रपति ट्रंप को कोई सहयोग ना दे। इसका इशारा चीन के सिंघुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान के अनुसंधान विभाग के निदेशक किन्ग फेंग के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने किया है। किन्ग फेंग कहता है -अमेरिका के नेतृत्व में कुछ देशों ने चीन को बदनाम करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय अभियान शुरू किया है। भारत के कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय वातावरण चीन की तुलना में कहीं अधिक अनुकूल है।’
चीन साफ तौर पर कह रहा है कि ट्रम्प प्रशासन भारत को चीन पर सख्त होने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ताकि चीन-भारत विवादों से वह लाभ उठा सके।
चीनी यह भी प्रचार कर रहे हैं कि नई दिल्ली के सहयोग के लिए अमेरिका भारत को अधिक मदद और लाभ देगा। चीन इस बात का जोरदार तरीके से खंडन कर रहा है कि उसे वैश्विक अलगाव का सामना करना पड़ रहा है। चीन का मीडिया लिखता है कि यह एक भ्रम है जो अमेरिकी हितों का प्रतिनिधित्व करता है। वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय स्थितियां ऐसी नहीं है कि चीन की कमजोरी का लाभ भारत के पक्ष में मिल जाए।
हालांकि चीन और भारत कुछ परामर्शदाताओं के माध्यम से अतिरिक्त विश्वास निर्माण के उपायों पर भी काम कर रहे हैं। दोनों सरकारों के प्रयासों से अप्रैल 2018 और अक्टूबर 2019 में भी शीर्ष स्तर पर अनौपचारिक बैठके हुईं थी और इस दौरान रणनीतिक विश्वास बहाल किया गया था।