भारतीय एक्सपर्ट्स की रायः चीन को जवाब देने का यही उपयुक्त समय
IIW, 16,JUNE,2020
हांगकांग, ताइवान और तिब्बत चीन की दुखती रगें हैं। इस पर कोई भी उंगली रखता है तो चीन तिलमिला जाता है। भारत के कुछ बुद्धिजीवियों ने 12 जून को वन चाइना पाॅलिसी पर विचार करने के लिए एक वेबेनार का आयोजन किया था। इस आयोजन पर बीजिंग गुस्से से लाल हो गया है और यह चेतावनी दी है कि भारत और इस वेबेनार के आयोजक आग से न खेले।
चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपी इस चेतावनी पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इस वेबेनार के आयोजक एवं आरएसएस से जुड़े अखबार आर्गेनाइजर के पूर्व संपादक डाॅ शेषाद्रि चारी ने indiaintheworld.in से कहा कि चीन को यह समझना चाहिए कि तिब्बत उसकी वन चाइना पाॅलिसी का हिस्सा नहीं है। हालांकि भारत तिब्बत की आजादी की मांग का समर्थन 1950 में नहीं किया , लेकिन जैसा कि चीन ने भारत के साथ समझौते में भी यह स्वीकार किया है कि तिब्बत की स्वायत्ता बरकरार रहेगी, उसकी मांग करता है और करता रहेगा। श्री चारी ने कहा कि बीजिंग के रवैये के कारण वर्ल्ड में एक एंटी चाइना कोएलिशन बन रहा है। जिसमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा और यूरोप के कुछ अन्य देश साथ मिलकर आगे आ रहे हैं, वैसे में वन चाइना पाॅलिसी को काफी चुनौती मिलने वाली है।
श्री चारी ने कहा कि अमेरिका पहले भी ताइवान को अपनी मिलिट्री सपोर्ट देता रहा है। आगे भी वह ताइवान के साथ अपने संबंध को मजबूत करेगा। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि भारत को भी ताइवान के साथ अपने व्यापारिक और आर्थिक संबंध बढ़ाने चाहिए। श्री चारी ने सरकार को सलाह दी कि हमें ताइवान के बिजनेस रिप्रेजेन्टेटिव को राजनयिक की सुविधाएं देनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि भारत के पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सहलाहकार अरविंद गुप्ता एवं कुछ अन्य बुद्धिजीवियों ने 12 जून को हुए इस वेबनार में सरकार को कई सुझाव दिए थे। इस आयोजन में भाग लेने वाले प्रमुख लोगों में भारत सरकार के पूर्व एडिशनल सेक्रेटरी रानाडे, फोरम फाॅर इनटेग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी के सेक्रेट्री जेनरल शेषाद्रि चारी, स्टार न्यूज ग्लोबल एंड भारत शक्ति के संपादक नितिन गोखले और सीनियर फेलो एट पीस एंड ग्लोबल कनफिलिक्ट स्टडीज के अभिजीत अय्यर मित्रा थे।
जयदेव राणाडे ने सरकार को सलाह दी कि तिब्बत के धर्म गुरू दलाई लामा को हमें और महत्व देना चाहिए और प्रमुख मंचों पर उनकी उपस्थिति बढ़ाई जानी चाहिए। बुद्धत्व के कारण तिब्बत हमसे बहुत करीब है।
अरविंद गुप्ता ने कहा कि हम जिस तरह चीन के क्षेत्र का सम्मान करते हैं उस तरह चीन को हमारे क्षेत्र का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने यह चिंता जाहिर की कि भारत अभी तक इस मामले में बयान जारी करने के आगे कुछ ज्यादा नहीं कर पाया है। उन्होंने चीन द्वारा दखल किए गए चारों प्रांतों का जिक्र किया। उन्होंने भारत सरकार को यह सलाह दी कि ताइवान के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। खास कर आर्थिक व तकनीक के क्षेत्र में।
नितिन गोखले ने भी ताइवान के साथ आगे बढ़ने का विचार रखा। उन्होंने कहा कि चीन को जवाब देने के मामले में ताइवान एक नीचे लटकता फल की तरह है, जहां भारत आसानी से पहुंच सकता है।
इतने प्रमुख लोगों की सलाह को चीन ने अपने लिए खतरे का सबब मान लिया है। चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इस वेबेनार के आयोजन पर कड़ी आपत्ति जताई है।
बीजिंग के अनुसार वन चाइना पाॅलिसी का मतलब है हांगकांग, ताइवान और तिब्बत पर चीन की सत्ता को स्वीकार करना और इन तीनों भौगोलिक इकाइयों के साथ किसी तरह का कोई स्वतंत्र राजनयिक संबंध नहीं रखना। हालांकि इन तीनों भौगोलिक इकाइयों में स्वतंत्रता, लोकतंत्र और स्वायत्ता की मांग सालों से उठती रही हैं, लेकिन चीन से संबंध की कीमत पर कोई भी देश इनकी मांगों पर समर्थन नहीं करता। हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा, हांगकांग को लेकर चीन की नीति की खुलेआम आलोचना कर रहे हैं और अपने अपने तरीकों से चीन को घेरने या सबक सिखाने का प्रयास भी कर रहे हैं।
ग्लोबल टाइम्स ने इन सुरक्षा विशेषज्ञों को सपने ना देखने की सलाह देते हुए कहा है कि वन चाइना पाॅलिसी को पूरी दुनिया मानती है। अगर ये सलाहकार भारत को चीन की इस ग्लोबल पहचान पर प्रश्न खड़ा करने की सलाह मोदी सरकार को दे रहे हैं तो इसका मतलब वे भारत को आग से खेलने की सलाह दे रहे हैं।
चीन के इस अखबार का कहना है कि भारत ने वन चाइना पाॅलिसी को 1950 में ही मान्यता दे दी थी, जब दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुआ था। अब इस समय चीन की इस नीति को चुनौती देने का मतलब है चीन को उकसाना। ग्लोबल टाइम्स ने धमकी भरे लहजे में कहा है कि भारत के इस रवैये से अंततः उसे ही नुकसान होगा।
डिफेंस कैपिटल के संपादक एनसी बिपिन्द्र ग्लोबल टाइम्स की इस घौंस को कोई महत्व देने से मना करते हुए कहते हैं कि अभी तक चीन के साथ रहने का हमें कोई फायदा नहीं हुआ है। चीन हमें एक बाजार की तरह इस्तेमाल करता आ रहा है। वह अपने घटिया क्वालिटी के सामानों का डंपिंग ग्राउंड भारत को समझता है। एनसी बिपिन्द्र का कहना है कि चीन लगातार भारत के खिलाफ काम कर रहा है। वह हमें न्यूक्लियर सप्लई ग्रुप का मेंम्बर नहीं बनने दे रहा है और ना सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य ही। बार बार वह वीटो जारी कर हमें रोक रहा है। एन सी बिपिन्द्र का कहना है कि इस समय एंटी चाइना सेंटीमेंट बहुत ज्यादा है। कई देश चीन के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। यह समय है कि भारत को भी एक मजबूत स्टैंड चीन के खिलाफ लेना चाहिए।