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भारत से ‘युद्ध’ के बाद कंगाल होगा चीन

 

भारत के सैन्य अधिकारियों और जवानों पर हमला कर चीन ने बहुत बड़ा खतरा मोल लिया  है। जिस तरह से उसको दुनिया के कई देश चारों ओर से घेर रहे हैं और धीरे धीरे चीन की गर्दन पर फंदा कस रहे हैं उससे आने वाले दिनों में चीन का दम घुंट कर रह जाएगा। ना तो चीन मिलिट्री पावर रहेगा और ना इकोनोमिक पावर। जिस इकोनिमी के बल पर चीन अमेरिका को पीछे छोड़ सुपर पावर बनने का सपना देख रहा है वह सपना उसका चूर चूर होना अब निश्चित है।

भारत से इसकी शुरूआत हो गई है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने टेलीकाॅम क्षेत्र में चीनी उपकरणों के उपयोग पर रोक लगाने का फैसला कर एक मजबूत कदम उठाया है। चीनी कंपनियों  को इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र से भी बाहर किए जाने की मांग हो रही है। जनता में जबर्दस्त गुस्सा है और यह चीन का मनोबल तोड़ने वाला है। चीन अभी से ही गिरगिरा रहा है कि सीमा पर तनाव के कारण भारत में जो एंटी चीन सेंटीमेंट उभरा है उससे बिजनेस को भारी नुकसान होने वाला है। ओपो मोबाइल ने अपनी 5 जी टेक्नोलाॅजी वाला मोबाइल लांच करने का फैसला टाल दिया है। लोग चीन के सभी मोबाइल ऐप को डिलीट कर रहे हैं।

चीन की बर्बादी की पटकथा भारत के लोगों ने लिख दी है। चीन अपने कंपनियों से कह रहा है कि दक्षिण एशिया के अन्य देशों में बाजार देंखे। पूरे दक्षिण में भारत जितना बाजार नहीं है। चीन को उसकी हिमाकत का जवाब मिल रहा है।

चीन को इस बात का गुमान है कि वह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारी है। उसका व्यापार 4.6 ट्रिलियन डाॅलर का है। वह इंपोर्ट से ज्यादा एक्सपोर्ट करता है। उसका ट्रेड बैलेंस 367 बिलियन डाॅलर्स का है। यानी पूरी दुनिया से वह इतनी राशि अतिरिक्त कमा कर लाता हे। 1980 के दशक तक यह बादशाहत अमेरिका के पास थी। लेकिन तमाम अनैतिक व जोर जबर्दस्ती से चीन ने 40 साल में सबको पीछे छोड़ दिया है। दूसरे को बर्बाद कर अपनी अर्थव्यवस्था और अपना साम्राज्य बढ़ाने की चीन की यही आदत अब उसे ले डूबने वाली है।

क्योंकि जिन देशों के साथ चीन का बहुत बड़ा  बिजनेस था अब वे ही देश चीन की बर्बादी का कारण बनने जा रहे हैं। इन देशों में पहला नाम अमेरिका का है। चीन का अमेरिका के साथ 481 बिलियन डाॅलर का व्यापार है। जिस तरह से अमेरिका और चीन में ठनी हुई है उससे ना तो यह व्यापारिक संबंध बरकरार रहेगा और ना चीन का आर्थिक दबदबा। अमेरिका में चाहे जो भी प्रेसिडेंट बने चीन के साथ अमेरिका का रिश्ता अब सुधरने की सीमा से बाहर चला गया है। न सिर्फ अमेरिकी कंपनी चीन से जाने का मन बना चुकी हैं, बल्कि अमेरिका में चीनी कंपनियों का काम करना अब बहुत मुश्किल हो गया है।

प्रेसिडेंट ट्रंप ना सिर्फ चीनी उत्पादों को अमेरिका में आने से रोकने के लिए कृतसंकल्प हैं, बल्कि अमेरिका में काम कर रही चीनी कंपनियों की कारगुजारियों पर एक जांच टीम भी बिठा दी है।
यहां तक कि चीन ने अमेरिकी लोगों को जो 1.1 ट्रिलियन डाॅलर का कर्ज दे रखा है वह भी डूबने वाला है। चीनी कंपनियों के लिए अमेरिकी शेयर बाजार में काम करना भी काफी कठिन हो गया है।
अमेरिका के बाद चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सांझेदार जापान है। जापान और चीन के बीच 148 बिलियन डाॅलर का व्यापार है। इस समय जापान पूरी तरह अमेरिका के साथ है और वह चीन से अपनी कंपनियों और अपने निवेश को हटाने के लिए कृतसंकल्प हो चुका है। जापान केवल आर्थिक मामले में चीन के विरुद्ध नहीं जा रहा है, बल्कि सामरिक मामले में भी वह चीन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान चुका है। अभी हाल ही में जापान की पार्लियामेंट डायट ने 46.3 बिलियन डाॅलर का डिंफेस बजट स्वीकृत किया है। ताकि वह लड़ाकू विमान एफ -35 बी खरीद सके। अभी तक जापान नार्थ कोरिया को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था लेकिन यह बजट चीन से संभावित युद्ध की तैयारी के लिए है।
साउथ कोरिया, वियतनाम और भारत भी चीन के  बड़े व्यापारिक साझेदार रहे हैं। साउथ कोरिया और चीन का संबंध बहुत मधुर कभी नहीं रहा, कारण चीन की नार्थ कोरिया से गहरी दोस्ती और नार्थ कोरिया और साउथ कोरिया के बीच युद्ध की स्थिति।
अब बात वियतनाम की । तो वियतनाम और चीन के बीच दुश्मनी जग जाहिर है। एक छोटे सा देश होने के बावजूद वियतनाम चीन को कड़ी टक्कर दे रहा है। और इस समय जब चीन में स्थापित बाहर की कंपनियां वियतनाम में तेजी से शिफ्ट हो रही हैं तो फिर चीन के साथ व्यापारिक रिश्तें खराब होंगे ही।

जिनपिंग के रवैये और चीन में कोरोना वायरस के उत्पन्न होने के बाद 56 विदेशी कंपनियां चीन से अपना सामान बांध कर जिन दूसरे देशों में पहुंची हैं, उनमें से 26 वियतनाम में 10 ताइवान में और 8 थाइलैंड में गई हैं । सबको मालूम है कि वियतनाम और ताइवान में यदि चीन से कंपनियां जा कर अपनी यूनिट लगाती हैं, तो चीन का क्या होगा।


हालांकि चीन और भारत के बीच लगभग 60 बिलियन डाॅलर का व्यापार है उसमें भी भारत लगभग 15 बिलियन डाॅलर का निर्यात करता है और 45 बिलियन डाॅलर का आयात चीन से करता है। चीन ने भारत के साथ बेवजह युद्ध का ऐलान कर अपने हितों पर जबर्दस्त कुठाराघात किया है। भले ही चीन के साथ हमारा व्यापार अमेरिका और जापान जितना नहीं है, लेकिन हमारा बाजार इन सभी देशों से ज्यादा बड़ा है।

चीन की हजारों फैक्ट्रियां भारत के बदौलत चल रही है। मोमबती से दीपावली के गणेश की मूर्ति तक बनाने वाली सभी फैक्ट्रियों पर अब ताला लगना सुनिश्चित है। भारत में सरकार से ज्यादा यहां के लोग जागरूक हैं। एक बार मन में ठान लिया तो चीन का चूल्हा चौका  बंद कर सकते हैं। चीन को भारत से पंगा महंगा पड़ेगा।

BIKRAM UPADHYAY

 

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