कोरोना संकट में लगभग 4 महीने की जद्दोजहद के बाद भी विश्व को इससे पार पाने के लिए ठोस उपाय सूझ नहीं रहा । कोरोना के लिए कौन सी दवा उपयुक्त होगी अभी तक तय नहीं कर पा रहे हैं । अभी जो भी दवा इसके लिए सबसे मुफीद मानी जा रही है ,उसमें हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन को ही माना जा सकता है। यह वही दवा है जिसके लिए ट्रंप ने मोदीजी को फोन किया था और ना मिलने पर कार्रवाई की धमकी भी दी थी ।
अब यह दवा भारत न सिर्फ़ अमेरिका को देने जा रहा है, बल्कि सरकार द्वारा उन तमाम देशों को भी इस दवा की खेप पहुंचाने की कोशिश की जा रही है जो कोरोना से सबसे अधिक पीड़ित हैं । इनमें एशियाई देश भी शामिल है।
दरअसल हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन भारत में मलेरिया के लिए उपयुक्त दवा मानी जाती रहै । इसका उपयोग काफी एहतियात के साथ किया जाता रहा है ,क्योंकि इसका हृदय और किडनी पर भी खराब़ असर पड़ता है। इसलिए इस दवा के साथ यह चेतावनी होती है बिना डॉक्टर की सलाह के दवा का उपयोग ना करें ।इस दवा को खुलेआम अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सराहा है । उन्होंने इसे गेमचेंजर का नाम दिया है । अमेरिका के एफडीए ने भी इस दवा पर अपनी सहमति जाहिर कर दी है । दुनिया में इस समय इस दवा की कालाबाजारी होने लगी है। गनीमत है कि यह दवा भारत में बड़ी मात्रा में बनाई जाती है।
भारत अकेले दुनिया को आपूर्ति की जाने वाली 70 फ़ीसदी हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन का उत्पादन करता है। इस समय भारत की क्षमता 40 टन प्रतिमाह उत्पादन की है । यदि भारत चाहे तो 70 टन तक इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ा सकता है। 40 टन दवा से 20 करोड़ टेबलेट बन सकते हैं। भारत सरकार को भी इस दवा का महत्व मालूम है । देश में घरेलू खपत के अनुसार दवा का स्टॉक बना रहे इसके लिए मोदी सरकार ने आनन-फानन में दो फैसले किए। पहला यह कि 25 मार्च को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन के निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगा दी औरू दूसरा दवा निर्माताओं को 10 करोड़ै टैबलेट बनाने का ऑर्डर दे दिया । अमूमन एक मरीज को 14 टेबलेट दिए जाते हैं । इस हिसाब से भारत 70 लाख लोगों को इस दवा से इस समय इलाज कर सकता है और जब चाहे दवा का उत्पादन बढ़ा सकता है ।अब चूंकि अमेरिका को सूझ नहीं रहा है कि वह क्या करें, इसलिए उसने भारत से कोरोना के लिए इस दवा को भेजने का आग्रह किया है , लेकिन भारत के लिए अमेरिका ही नहीं वे तमाम देश भी महत्वपूर्णहैं जो इस समय भारत पर निर्भर हैं। विदेश मंत्रालय का यह कहना है कि भारत हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन का उत्पादन इसलिए बढ़ाना चाहता है ताकि उन देशों को भी दवा दी जा सके जो दवा के क्षेत्र में भारत से आशा रखते हैं।इनमें कुछ छोटे देश भी हैं जो एशिया में हैं ।
बस इस दवा के उत्पादन बढानेें में एक ही अड़चन है और यह कि इसके लिए आवश्यक फार्मास्यूटिकल इनगर्रेडियंस का आयात चीन से होता है ।भारत अपनी जरूरत का लगभग 70 प्रतिशत फार्मास्यूटिकल इनगर्रेडियंस का चीन से आयात करता है ।
इस दवा की मांग बढने के बाद मोदी सरकार ने कुछ हद तक पाबंदी हटा दी है । हालांकि कोरोना के कारण देश की अर्थवयवस्थाा खराब हो रही है, लेकिन हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के निर्यात से भारत की कई कंपनियों को फायदा होने वाला है ।
भारत हमेशा से दुनिया को रास्ता दिखाता रहा है। अब इस महामारी के समय भी पूरी दुनिया भारत की ओर ही देख रही है। चीन के व्यवसायिक व्यवहार पर दुनिया को भरोसा नहीं है, लेकिन भारत अपनी साख बनाने में कामयाब रहा है। जिसका फायदा इस कोरोना संकट में भी मिलेगा।