दिल्ली विधानसभा के लिए 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। आज 6 फरवरी की शाम को चुनाव प्रचार खत्म हो गया। 70 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव में कौन बाजी मारेगा और कौन हाथ मलता रह जाएगा यह तो 11 फरवरी को वोटों की गिनती के बाद ही पता चलेगा, लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम दिन सभी दलों ने एड़ी चोटी का जोर लगाया और अपने अपने जीत के दावे भी किए।
कांग्रेस के नेताओं ने दावों पर कोई जोर नहीं दिया लेकिन भाजपा और आम आदमी पार्टी ने जरूर अपने दावों में दम खम दिखाने का प्रयास किया। आज केंद्रीय गृहमंत्री अमितषाह ने रोड शो किया तो आम आदमी पार्टी के नेता घर घर घूमते नजर आए।
भाजपा ने दिल्ली में पूरी जान लगा दी है। उनका चुनाव प्रचार अभियान औरों से बहुत आगे रहा। चाहे नेता हों या अभिनेता भाजपा के संग ज्यादा नजर आएं। चाहे वह सन्नी देओल हो या फिर ग्रेट खली, सपना चौधरी हों या फिर रवि कि शन और दिनेश लाल यादव उर्फ निरूहुआ। सब भाजपा के साथ नजर आए।
इनमें से कुछ तो भाजपा के सांसद ही हैं। क्रिकेटर और सांसद गौतम गंभीर भी भाजपा के लिए जी जान से जुड़े नजर आए। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की ओर से 2015 के विधानसभा चुनाव मे रंग जमाने वाले कई चेहरे गायब मिले। कुमार विश्वास और योगेन्द्र यादव जेसे दो बड़े सिपहसलार आप छोड़ चुके हैं या उन्हें हटा दिया गया है तो बालीवुड ने भी आम आदमी पार्टी को ज्यादा तवज्जों नहीं दी है। केवल गायक विशाल डडलानी ही चुनाव प्रचार करते नजर आए।
कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा चुनाव मे या तो आधे मन से हिस्सा लिया या फिर कांग्रेस में आपस में ही मतभेद बना रहा। खबर थी कि नवजोत सिंह सिद्धू को प्रचार की कोई बडी जिम्मेदारी दी जाएगी, लेकिन वे चुनाव में कोंग्रेस की ओर से कहीं नजर नहीं आएं।
चुनाव से ठीक पहले कीर्ति आजाद को दिल्ली लाया गया। यह भी किहा गया कि उन्हें प्रचार का कमान सौंप दिया जाएगा। लेकिन कीर्ति कांग्रेस के दिल्ली के पुराने नेता से ही पार नहीं पा सके और सिर्फ अपनी पत्नी पूनम आजाद के चुनाव प्रचार तक सिमट कर रह गए।
दिल्ली का विधानसभा चुनाव देखा जाए तो सभी पार्टी के लिए अहम है। भाजपा के लिए दिल्ली जीतना इसलिए महत्वपूर्ण है कि 2019 में दुबारा सत्ता में आने के बाद से पार्टी लगातार राज्यों में हार रही है। महाराष्ट्र और झारखंड की सत्ता से बाहर हुई तो हरियाणा में लंगड़ी सरकार चला रही है। सीएएस और एनआरसी को लेकर केंद्र के खिलाफ चल रहे आंदोलन के कारण एनडीए के सहयोगियों को यह लगने लगा है कि भाजपा का जनाधार घट रहा है, इसलिए उन्हें भाजपा पर हावी होने और एनडीए में बने रहने के लिए तोल मोल का अवसर मिल रहा है। दिल्ली में हारे तो बिहार में भी भाजपा की स्थिति कमजोर हो सकती है।
आम आदमी पार्टी यदि दिल्ली का चुनाव हारती है तो उसका अस्तित्व ही दाव पर लग जाएगा। आम आदमी पार्टी का जनाधार या संगठन दिल्ली के अलावा कहीं नहीं बन पाया है। इसलिए उनके लिए राजनीति में बने रहने का विकल्प ही दिल्ली में जीत है। कांग्रेस दिल्ली में चुनाव जीतने की स्थिति में ना है और ना उसके लिए काम कर रही है। यहां भी कांग्रेस यही मना रही है कि सत्ता से कुछ दूर आम आदमी पार्टी रह जाए और कम से कम कांग्रेस के इतने विधायक जीत कर आ जाए कि संभव हो तो आम आदमी पार्टी के साथ दिल्ली की सरकार में शामिल हो जाए। जो भी होगा उसका पता अब 11 फरवरी को ही चलेगा तब तक सभी पार्टियां अपने समीकरण के हिसाब से अंदरूनी तरीके से काम में जुटी रहेगी। पैसा और शराब दिल्ली में भी चलते हैं। इसलिए दो दिन इस पर भी लोगों का ध्यान रहेगा।