क्या चीन अपने ही बोझ से दब कर बिखर जाएगा।जनसंख्या में नंबर 1 की स्थिति हासिल करने वाला चीन आर्थिक ताकत के रूप में भी पहला स्थान हासिल करने की जल्दी में है। इस होड़ में चीन लगातार कर्ज की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता रहा है, बिना यह विचार किए कि एक दिन कर्ज का यह बोझ उसे ही डुबो सकता है। हाल के आकड़े बताते हैं कि चीन की कंपनियां और वहां के वित्तीय संस्थान अपनी देयता चुकाने में फेल हो रहे हैं। चीन की संपत्ति में गिरावट, छाया ऊर्जा संकट, कमजोर उपभोक्ता मांग और कच्चे माल की बढ़ती लागत से प्रभावित चीन आर्थिक मंदी की चपेट में आता जा रहा है। अनुमान है कि तीसरी तिमाही में चीन की आर्थिक वृद्धि 5 फीसदी से भी नीचे आ सकती है।
हालांकि चीन के प्रधानमंत्री के कियांग ने हाल ही में एक बयान जारी कर कहा कि चीन के पास मौजूदा बिजली संकट और उच्च कमोडिटी की कीमतों सहित देश के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए पर्याप्त तरीके हैं।
कर्ज समस्या पिछले एक दशक में चीन का कर्ज नाटकीय रूप से बढ़ा है। ये कर्ज मुख्य रूप से चीन के सरकारी बैंकों द्वारा बड़े पैमाने निजी क्षेत्र की कंपनियों को दिए गए हैं ताकि वे वैश्विक वित्तीय संकट के बाद भी अमेरिका और यूरोप के देशों की कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में टिक सके। लेकिन अब ये कर्ज पहाड़ की तरह हो गए हैं जो चीन की स्थिरता और यहां तक कि दुनिया के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बन रहे हैं।
चीन का कर्ज सकल घरेलू उत्पाद का 250 प्रतिशत से अधिक है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका से अधिक है। यह दुनिया की सबसे अधिक कर्ज लेने वाले देश जापान से कुछ ही कम है। विशेषज्ञों का कहना है चीन का कर्ज उस वित्तीय संकट और वैश्विक आर्थिक मंदी का कारण बन सकता है। चीन के हुक्मरान चाहे जो कहें लगभग सभी बड़ी अंतराष्ट्रीय एजेंसियों का मानना है कि चीन आर्थिक संकट में है और उसकी विकास दर 5 फीसदी से भी नीचे है। नैटिक्सिस ने तीसरी तिमाही में 4.9 प्रतिशत की गिरावट की भविष्यवाणी की है तो स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और ब्लूमबर्ग के विश्लेषकों भी कहना है कि चीन में अर्थव्यवस्था का विस्तार औसत 5 प्रतिशत से नीचे ही होगा। एचएसबीसी ने कहा है कि चीन की शेष वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 4-5 प्रतिशत की सीमा तक धीमी हो सकती है। रॉयटर्स ने अपने सर्वेक्षण में तीसरी तिमाही की जीडीपी 5.2 प्रतिशत रहने की भविष्यवाणी की है। इसके पहले चीन ने दावा किया था कि 2021 में उसकी विकास दर 7.8 प्रतिशत रहेगी।
चीन में दो बड़े संकट एक साथ खड़े हुए। एक तो उसकी सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंप एवरग्रांडे बहुत बड़ी आर्थिक समस्या में घुंस चुकी है। वह अपने बांडों के ब्याज भुगतान तक नहीं कर पा रही है। उसके ग्राहक भाग रहे हैं और उसके स्पलायर उसे माल देना बंद कर चुके हैं। एवरग्रांडे के संकट के कारण चीन के कई बैंकों पर भी भारी दबाव आ गया है और वहां भी पेमेंट की समस्या शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही चीन में अचानक बिजली का संकट खड़ा हो गया है। वहां शहर के शहर ब्लैक आउट के शिकार हैं। बढ़ते वित्तीय जोखिमों पर अंकुश लगाने के लिए, बीजिंग ने संपत्ति बाजार पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। सितंबर की दूसरी छमाही के दौरान बिजली की कमी के कारण कारखानों को भी उत्पादन रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा।