चीन को यकीन नहीं कि भारत के साथ सीमा पर कोई स्थाई शांति स्थापित हो पाएगी। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का मुख पत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भले ही 5 जुलाई को स्टेट काउंसलर और उनके विदेश मंत्री वांग यी और भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बीच बातचीत के बाद एक बनी सहमति के तहत दोनों देश की सेना पीछे हट रही हैं, लेकिन नहीं लगता कि यह सहमति लंबे समय तक बनी रहेगी। ग्लोबल टाइम्स ने दोबारा फिर झड़प होने की संभावना का कारण भारत के राष्ट्रवाद को बताया है और कहा है कि जिस तरह भारतीय सेना को यह महसूस हो रहा है कि उन्होंने गलवान घाटी में कुछ खो दिया है और जो उनका व्यवहार चीन के प्रति है उससे लगता है कि लड़ाई फिर छिड़ सकती है।
ग्लोबल टाइम्स ने अपने दो एक्सपर्टस की राय प्रकाशित की है। चीन के सामरिक मामलों के अनुभवी एक्सपर्ट और टीवी कमेंटेटर सांग झानपिंग का कहना है कि चीन मिलिट्री पावर में इंडिया से काफी मजबूत है। इसलिए यदि कोई युद्ध छिड़ा है तो चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी इंडिया को हरा देगी। झानपिंग का कहना है कि दोनों देशों ने आपसी सहमति के आधार पर सैनिकों को पीछे भेजने का फैसला किया है, किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि चीन ने कोई कमज़ोरी के कारण पीछे हटना मंज़ूर किया है। चीन हमेशा अपने पड़ोसियों के साथ एक दोस्ताना संबंध रखना चाहा है। उम्मीद है कि भारत भी इस द्विपक्षीय विवाद पर संयम के साथ पेश आएगा।
झानपिंगका यह भी कहना है कि भारत में लगातार राष्ट्रवाद की भावना बढ़ रही है। आजादी के समय से ही भारत अपना मिलिट्री पावर बढ़ाने के प्रयास में है। सेना के प्रति अंध विश्वास भारत में कूट कूट कर भरा है। कुछ पूरब व पश्चिम के देश हथियारों के जरिए भारत के साथ नज़दीकी संबंध बनाए हुए हैं। लेकिन वे सिर्फ अपने हथियार बेच रहे हैं, टेक्नोलाॅजी ट्रांसफर नहीं कर रहे हैं। जिसके कारण भारत की सैन्य क्षमता नहीं बढ़ रही है।
झानपिंग ने बाॅयकाट चाइना पर भी रोश जताया है। उनका कहना है कि कुछ लोग बहुत पहले से चीन के सामान पर प्रतिबंध लगाने की सोच रहे थे लेकिन उन्हें मौका नहीं मिल रहा था। इस सीमा विवाद के बाद उनको अवसर मिल गया। लेकिन इस तरह भारत ना तो अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा सकता है और ना मिलिट्री ताकत ही हासिल कर सकता है। वह चीन के सामने तो टिक ही नहीं सकता।
अपने विचार के अंत में झानपिंग ने कहा है कि इस समय दोनों पक्षों ने सीमा विवाद से निपटने पर एक सहमति बनाई है, लेकिन सच तो यह है कि दोनों के बीच आपसी विश्वास काफी कम हो गया है। भारतीय सेना को लगता है कि उन्हें गलवान घाटी के संघर्ष में काफी कुछ खोना पड़ा हैं। यदि यही भावना लंबे समय तक रही तो भारत-चीन के बीच सैन्य संबंधों में फिर से तनाव उत्पन्न हो सकता है। भारत लगातार हथियार खरीद रहा है और सीमा के पास सुविधाओं का निर्माण व विस्तार करता जा रहा है। वास्तव में भारत चीन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता है। भारत की यह कल्पना दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को बिगाड़ने में मदद करेगी। उम्मीद है कि भारत भी अपनी ओर से सकारात्मक पहल दिखाएगा।
एक और चीन के एक्सपर्ट लैन झिआनसे, जो कि चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज के एशिया पैसेफिक विभाग के डायरेक्टर हैं, ने भी यही आशंका जताई है कि भारत और चीन के बीच विवाद सुलझाने का यह फैसला लंबे समय तक बरकरार नहीं रह पाएगा। उन्होंने ग्लोबल टाइम्स में अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत और चीन मिलिट्री और डिप्लोमेटिक चैनलों के जरिए लंबे समय से बात करते आ रहे हैं, लेकिन अभी यह देखना बाकी है कि क्या वाकई सीमा पर तनाव कम हो गया। इस समय तो ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि सीमा पर कहीं भी तनाव कम हुए हैं।
भारत मे एंटी चाइना सेंटिमेंट काफी हाई है। चीन के सामान का बहिष्कार करने की आवाज़ काफी प्रबल है। इससे दोनों देशों केे बीच विश्वास के माहौल को बनने में काफी कठिनाई आ सकती है। नई दिल्ली ने बीजिंग के साथ दूरियाँ बढ़ाने के प्रयास किए हैं। उसने सीमा पर टकराव बढ़ाया है और अब अन्य क्षेत्रों में भी चीन के साथ संबंधों को बिगाड़ने में लगा है। इससे सीमा पर तनाव कम करने में परेशानी होगी। अब नई दिल्ली को यह ज़िम्मेदारी लेनी है कि आगे कोई उकसावे वाली कार्रवाई ना करे जिससे चीन और भारत के संबंध पूरी तरह से बिगड़ जाएं।
झिआनसे ने चीन को भी यह सुझाव दिया है कि वह शांत व स्थिर रहे। भारत के साथ किसी विवाद पर जुबानी जंग के बजाय चीन को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह बताना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत और यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि टकराव भारत के कारण उत्पन्न हो रहा है। चीन को विवादित क्षेत्र से अपने सैनिकों को पूरी तरह हटा लेना चाहिए। लेकिन इस बीच चीन को सजग और तैयार भी रहना चाहिए कि यदि भारत कोई हिमाकत करता है तो उसे भरपूर जवाब दिया जाए, खासकर तब जब भारत ने सीमा पर टकराव की स्थिति में नियम को बदल दिया है। यानी अपने सैनिकों को गोली चलाने का भी आदेश दे दिया है।
झिआनसे ने अंत में यह कहा है कि यह भारत को निर्णय करना है कि उसे तनाव बढ़ाना है या ठंडा करना है। इस चीनी एक्सपर्ट ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अप्रैल 2018 में हिंदुस्तान टाइम्स में छपे उस इंटरव्यू का हवाला दिया है, जिसमें मोदी ने कहा था – एलएसी को लेकर कुछ भ्रम के चलते कई बार सीमा पर भारत और चीन के बीच छोटी मोटी झड़पें हुई हैं। लेकिन दोनों देश मिलिट्री या डिप्लोमैटिक चैनलों के जरिए आपसी बातचीत से मामले को सुलझा लेते हैं। इससे पता चलता है कि दोनों देश के नेता परिपक्व हैं आपस में शांतिपूर्ण तरीके से मामले को सुलझाने में सक्षम हैं। ’ चीन के इस एक्सपर्ट ने प्रधानमंत्री मोदी से अपेक्षा की है वे अपने बयान पर कायम रहेंगे।