BIKRAM UPADHYAY(IIW) 2 JUNE , 2020
कोरोना वायरस आदमी के साथ साथ दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को भी निगल रहा है। ऐसे में वे देश जो पहले से ही गरीब हैं कोरोना के बाद और मुहताज हो गए हैं । ये देश अब अपने कर्ज की अदायगी करन में असफल हो सकते हैं। यह आशंका विश्व के बड़े बड़े अर्थशास्त्री और वित्तीय संगठन भी बता रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो इसका सबसे बड़ा नुकसान चीन को हो सकता है। चीन ने पाकिस्तान और अफ्रीकी देशों को बहुत भारी कर्ज दे रखा है और वो भी उची ब्याज दर पर, जिसे ये देश इस समय लौटाने में अपनी असमर्थता जता चुके हैं। चीन ने लगभग 350 अरब डाॅलर का कर्ज इन देशों को दिया है जो अब डूब भी सकता है।
चीन ने खुद ही ऐलान किया है कि अब वह लैटिन अमेरिका के देशों को लोन नहीं देगा, क्योंकि वे देश अब लोन चुुकाने की स्थिति में नहीं हैं। चीन ने 2019 में डोमिनिशियन रिपब्लिक को 600 मिलियन डाॅलर का, सुरीनाम को 200 मिलियन डाॅलर का, ट्रिनीडाड एंड टोबैगो को 104 मिलियन डाॅलर का लोन दिया था। वेनेजुएला, ब्राजील, इक्वेडोर और अर्जेंटिना को भी करोड़ोे डाॅलर का कर्ज चीन ने दिया है। अब चीन इन देशों के पावर रोड और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को बंधक रखकर अपनी ही कंपनियों द्वारा पैसे लगा रहा है।
साउथ चाइना माॅर्निंग पोस्ट अखबार ने 25 मई को अपनी खबर में साफ लिखता है कि चीन लैटिन अमेरिकी देशों का पार्टनर्र है या उनका शिकार कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने अप्रैल में लैटिन अमेरिका क्षेत्र के दौरे पर चेतावनी दी थी कि बीजिंग की उधार देने की नीति दुर्भावनापूर्ण और नापाक है। अपनी पूंजी के जरिए चीन इन देशों की अर्थव्यवस्था की नशों में एक ऐसा रक्तप्रवाह इंजेक्ट कर रहा है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है और गवर्नेंवस को नष्ट कर रहा है।
जर्मनी के कील इंस्ट्टीयूट का आकलन है कि चीन ने 350 अरब डाॅलर नहीं बल्कि 520 अरब डाॅलर से भी अधिक का कर्ज इन देशों को दे रखा है। यदि इसमें सच्चाई है तो चीन वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ से भी अधिक का कर्ज दुनिया को बांट रखा है।
चीन की यह नीति रही है कि सामरिक रूप से महत्वपूर्ण विकासशील देशों में बड़ी परियोजनाओं के लिए कर्ज दो और यदि बाद में किसी देश ने कर्ज नहीं चुकाया तो फिर उन परियोजनाओं पर अपना कब्जा जमा लो।
यह कहा जा रहा है कि चीन जानबूझ कर इतना कर्ज बांट रहा है। अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप इसे चीन की डेब्ट ट्रैप डिप्लोमैसी कहते हैं।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक चीन से गुहार लगा चुके हैं कि उससे इस समय ना तो कर्ज की अदायगी के लिए कहा जाए और ना ही उससे कोई ब्याज लिया जाए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने वर्ल्ड इकोनोमी फोरम पर दुनिया के सामने यह स्वीकार किया कि उनका देश ब्याज और कर्ज अदायगी रोक कर ही कोरोना से बदहाल अर्थव्यवस्था को बचा सकता है और बीमारों के लिए सुवधिाएं खड़ी कर सकता है। बीजिंग से इसी तरह का अनुरोध कीर्गिस्तान, श्रीलंका और अफ्रीकी देश भी कर चुके हैं।
चीन ने पाकिस्तान की कई परियोजनाओं के लिए कर्ज दे रखा है उसमें सबसे अधिक राशि उसने सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर के लिए दे रखा है।
चीन गरीब देशों के लिए सबसे बड़ा बैंक बन गया है । वह बकायदा भूमि और विकसित परियोजनाओं को गिरवी रख कर लोन दे रहा है ।
चीन इस समय जबर्दस्त दुविधा में भी है। यदि वह ब्याज या कर्ज की राशि छोड़ देता है तो उसके ही कई बैंक व वित्तीय संस्थान दीवालिया हो सकते हैं। और यदि कर्ज और ब्याज की राशि के एवज में जमीन और परियोजनाओं को अपने कब्जे में करता है तो उसे पूरा करने और उसे चलाए रखने में उसे और अधिक पैसे लगाने पर सकते हैं। चीन के लिए दोनों परिस्थितियां जोखिम भरी हैं।
ग्लोब न्यूज वायर के अनुसार चीन की दो प्रमुख फंडिग एजेंसियां, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक आॅफ चाइना और चाइना डेवलपमेंट बैंक ने दुनिया के कई देशों के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में लगभग 335 अरब डाॅलर का निवेश किया है। इन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में रेलवे, रोड, पोर्ट और सड़क निर्माण के अलावा गैस प्रोजेक्ट्स भी शामिल हैं। चीन ने लगभग 86 अरब डाॅलर पावर प्रोजेक्ट्स में भी लगाए हैं।
चीन ने सबसे अधिक पैसा साउथ और साउथ ईस्ट ऐशिया में लगाया है। यहीं उसने वन बेल्ट ओर वन रोड पर भी फोकस रखा है। इसके अतिरिक्ति चीन का पैसा मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीका में भी लगा है।
पाकिस्तान के अखबार डाॅन के अनुसार पाकिस्तान को देखकर जोखिम में पड़े कई और देशों ने चीन से लोन माफ करने या ब्याज ना लेने की मांग की है। इसके पहले पाकिस्तान 12 हजार मेगावाट की अपनी बिजली परियोजना में चीन के निवेश पर देय 30 अबर रुपये के भुगतान को एक साल के लिए स्थगित करने की मिन्नते चीन से कर चुका था। इसके लिए खुद पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी चीन चल कर गए थे। पाकिस्तान ने चीन की सरकार से ब्याज कम करने का भी आग्रह किया और साथ में 10 साल के बजाय कर्ज 20 साल में लौटाने की भी गुजारिश की है ।
डाॅन का ही कहना है कि चीन ने लोन माफ करने या ब्याज कम करने का प्रस्ताव एम दम से ठुकरा दिया।
चीन के कर्ज में कई देश तो लगभग डूब चुके हैं। वाशिंगटन टाइम्स के अनुसार ईस्ट अफ्रीका के एक देश पर चीन का कर्ज उसके सालाना बजट का 80 प्रतिशत से अधिक है। इसी तरह इथोपिया के सालाना बजट का 20 प्रतिशत के बराबर चीन का कर्ज है। कीर्गिस्तान पर तो यही कर्ज उसके सालाना बजट का 40 फीसदी है।