देश में कोविड का प्रकोप जारी है। केंद्र के साथ राज्य सरकारें भी पूरे दम से इस महामारी से लोगों को बचाने में लगी हैं। लेकिन विपक्ष नरेंद्र मोदी की सरकार को बीच में ही कठघरे में खड़ा करने लगा है कि सरकार की नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है। कहा जा रहा है कि भारत का जीडीपी पिछले छह दशक में सबसे कम रहने वाला है। जीडीपी में 13 फीसदी से लेकर 25 फीसदी तक गिरावट आ सकती है। बेरोज़गारी भी बढ़ रही है और सबसे बड़ा आरोप यह लगाया जा रहा है कि सरकार सब कुछ बेच रही है। क्या वाकई ऐसा है।
एक नजर डालते हैं कोविड काल में भारत की अर्थव्यवस्था पर।भारत में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी 2020 को सामने आया और उसी समय से केंद्र सरकार इस महामारी के प्रबंधन में जुट गई। मार्च के पहले हफ्ते में यह स्पष्ट हो गया कि कोरोना से लोगों को बचाने के लिए बड़े कदम उठाने पड़ेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने उस समय कोरोना से बचाव के जो प्रारंभिक उपाय थे उसे अपनाते हुए 24 मार्च को देश में एक संपूर्ण लाॅक डाउन लगा दिया। लोगों की आवाजाही को रोकने से लेकर सभी संस्थानों और काम काज के दफ्तरों को बंद करने तक के कदम उठाए गए। जिम, सिनेमाहाॅल, उत्पादन, निर्माण, निर्यात-आयात और यहां तक कि अत्यंत जरूरी सामानों को छोड़ कर घरेलू उपयोग के अन्य सामानों की खरीद बिक्री पर भी रोक लगा दी गई। यानी अर्थव्यवस्था की चलती गाड़ी को यार्ड में खड़ा कर दिया गया। जाहिर है इस कदम का परिणाम विकास की दृष्टि से नकारात्मक ही आता।
विपक्ष ने भी मांग की कि सरकार आर्थिक आकड़ों और रेटिंग एजेंसियों की नकारात्मक रेटिंग की चिंता को छोड़ जनता को भूख और कोरोना के भय से पहले निकाले। मोदी सरकार ने इस सुझाव को मानने के साथ ही एक कदम आगे बढ़कर जनता की सेवा के लिए खजाना खोल दिए। जन धन के सभी खातों में तत्काल नकदी डालने के साथ साथ अनाज के गोदामों के मुंह खोल दिए। दुनिया में न पहले ऐसा हुआ था और ना होगा कि कोई सरकार अपनी 80 करोड़ जनता को लगातार आठ महीने तक मुफ्त राशन उपलब्ध कराए। मोदी सरकार ने किया। इस बीच रबी की फसल तैयार हुई और किसानों की उपज खरीदने के लिए बड़े पैमाने पर पहल की गई ताकि किसानों की जेब खाली ना हो। उपज के साथ साथ सभी किसानों के खाते में पीएम किसान योजना के तहत दो दो हजार के दो किस्तें भी जारी कर दी गईं। पूरे देश में कोरोना से लड़ने के लिए किट, दवाइयां और अस्पतालों की व्यवस्था ठीक करने और उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए कभी भी पैसे की कमी आड़े नहीं आने दी गई। आम आदमी से लेकर व्यापारी तक को कर भरने में रियायत दी गई और कई मामले में छूट भी प्रदान की गई। जाहिर एक तरफ खजाने में संसाधन आने बंद हुए तो दूसरी तरफ खजाने से अतिरिक्त संसाधन खर्च होते गए। इन सबका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ना लाजिमी है। दुनिया के तमाम देश ऐसे हैं, जिन्होंने कोविड 19 की आड़ लेकर अपने विदेशी कर्जों और देय ब्याज को चुकता करने में असमर्थता दिखा दी और अपने हाथ फैला दिए। लेकिन मोदी सरकार ने अपनी किसी भी देयता के लिए किसी को मनाने की जरूरत नहीं समझी और उल्टे उन्होंने दुनिया के लगभग 20 देशों को सामग्री और अन्य राहत पहुंचाए। ऐसा काम या तो अमेरिका ने किया या चीन व रूस ने । भारत इस महामारी के समय भी दुनिया के कई देशों को आर्थिक व अन्य मदद पहुंचाने वाला देश बना।
12 मई 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर यानी 20 लाख करोड़ रूपये के राहत पैकेज की घोषणा की। इस पैकेज में सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उद्योगों व मध्यमवर्ग के लिए नकदी उपलब्ध कराने के लिए राजस्व संग्रह को टाल दिया गया। इनकम टैक्स और जीएसटी की फाइलिंग डेट तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई। जीडीपी का लगभग 1.9 फीसदी हिस्सा जो उस समय राजस्व के रूप में प्राप्त हो सकता था, सरकार ने उसे उद्योग व जनता के हाथ में रहने दिया। जीडीपी के कुल 4.9 फीसदी के बराबर लोन व साख की सुविधा प्रदान की गई। 150 अरब रूपये अतिरिक्त स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए आवंटित किए गए। किसानों, पटरी पर खोमचा लगाने वालों और छोटे दुकानदारों को सस्ते कर्ज मुहैया कराए गए। उसके बावजूद मोदी सरकार का आर्थिक प्रबंधन कहीं से डगमगाया नहीं।
मोदी सरकार ने भारतीय उद्योग की रीढ़ सूक्ष्म, लघु एवं मघ्यम उद्यमों के लिए नीतियों में ऐतिहासिक बदलाव किया। ना सिर्फ टर्नओवर के हिसाब से इनका वर्गीकरण बदल गया, बल्कि 200 करोड़ तक के किसी भी टेंडर में इनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ग्लोबल कंपनियों को इस दायरे से बाहर कर दिया गया है। एमएसएमई के लिए एक और राहत प्रदान करते हुए आरबीआई ने इनके पुराने लोन को रिस्ट्रक्चर करने की भी सुविधा दे दी। मोदी सरकार ने अपनी गारंटी पर इन्हें वित्तीय सुविधाएँ देने का भी प्रावधान कर दिया है।
अब जरा भारत की अर्थव्यवस्था के नंबरों पर नजर डालते हैं। अर्थव्यवस्था की मजबूती का एक सबसे बड़ा सूचक होता है उस देश की करेंसी की डाॅलर के मुकाबले कीमत। जिस दिन भारत ने कोविड 19 पर रोक के लिए पूरे देश में एक साथ लाॅक डाउन की घोषणा की थी उस दिन डाॅलर का एक्सचेंज रेट 75 . 62 रुपये था और आज यानी 19 अगस्त को डाॅलर का एक्सचेंज रेट 74 .74 पैसे है। कह सकते हैं कि हमारी मुद्रा का अवमूल्यन इन चार महीनों में नहीं हुआ है। 20 मार्च 2020 को हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 4,69,909 मिलियन डाॅलर का था जो 14 अगस्त को बढकर 5,38,191 मिलियन डाॅलर का हो गया। यानी विदेशी निवेशकों को हमारी अर्थव्यवस्था में विश्वास बढ़ा है कम नहीं हुआ है।
महंगाई का सूचकांक मुद्रास्फीति की दर है। पिछले एक साल की मुद्रा स्फीति की दर देखें तो यह लगभग 6.09 प्रतिशत है। जो कि पिछले अनुमान 5. 3 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा है। मुद्रा स्फीति की दर बढ़ने का मुख्य कारण तंबाकू, खाद्य व पेय प्रदार्थ के कीमतों में मामूली बढ़त के कारण है। लेकिन यह बढ़त मामूली है। यानी महँगाई की वृद्धि दर भी कोई खास नहीं बढ़ी है। देश की वित्तीय और मौद्रिक नीति के प्रति जनता के विश्वास का पैमाना है बैंक जमा में वृद्धि या कमी। यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि अप्रैल 2020 से लेकर जून 2020 तक बैंकों की जमा वृद्धि दर 11 फीसदी से अधिक रही है। हालांकि बैंकों के त्रृण उठाव में कमी आई है जो बताता है कि अभी भी आर्थिक गतिविधियां तेज नहीं हुई है। लेकिन यह कहना कि अर्थव्यवस्था डूब रही है, गलत होगा।
इस समय पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है। आयात निर्यात दोनों की दशा खराब है। लेकिन कृषि प्रधान भारत ने इस कोविड काल में भी खाद्य पदार्थों के निर्यात में काफी नाम किया है। मार्च 2020 से लेकर 15 जुलाई 2020 तक की अवधि में भारत ने खाद्य पदार्थों के निर्यात में 27 फीसदी की वृद्धि हासिल की है।
भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी मजबूत स्थिति में है। हां औद्योगिक उत्पादन, विनिर्माण और कंस्ट्रक्शन उद्योग में अभी भी मंदी छाई है। लेकिन यह हमारे अकेेले की समस्या नहीं है। जब कोविड महामारी से दुनिया उबरेगी तो उस समय जो देश लंबी दौड़ लगाएंगे, उसमें निश्चित रूप से भारत का भी नाम होगा।