वो निरंकुश हैं, वे कानून का उल्लंघन करते हैं। वे कदाचारी व्यापार व्यवहार करते हैं, वे लाभ के लिए हजारों का कारोबार बंद करा देते हैं। वे लोभी है, वे अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सारे नियमों को ताक पर रख देते हैं। क्योंकि वे अमेजन और फ्लिपकार्ट है इसलिए वे देश के संस्थानों को धत्ता बता कर अपना दबदबा दिखाना जानते हैं।
जब इनसे जुड़ा हुआ मामला 9 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में आया तो भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ को यह कहना पड़ा कि अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को जांच रूकवाने के बजाय जांच के लिए स्वेच्छा से प्रस्तुत होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में ये दोनों बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस अपील के साथ पहुंची थी कि उनके खिलाफ कंप्टीशन कमीशन ऑफ इंडिया कोई जांच ना करे। इसके पहले यही कंपनियां कर्नाटक हाईकोर्ट के पास इसी आस में गई थी, लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट ने जांच रूकवाने के बजाय जांच जारी रखने का आडॅर्र सुनाया था।
अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट, ई-रिटेल बाजार में दो ऐसी बहुराष्ट्र्र्रीय कंपनियां हैं जिनका कारोबार पूरे विश्व में फैला है और ये अपनी मनमानी के जरिए किसानों, छोटे दुकानदारों और व्यापारियों को धीरे धीरे बाजार से बाहर करती जा रही हैं। भारत में इनका व्यापार तेजी से फैल रहा है और अनुमान है कि 2026 तक ये हमारे देश में 200 अरब रुपये से ज्यादा का कारोबार करने लगेंगी।
इन दोनों बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ कम्पीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया में शिकायत दिल्ली व्यापर महासंघ ने की है। महासंघ का कहना है कि ये कंपनियां चुनिंदा विक्रेताओं को प्रश्रय देकर उनके व्यापार को बढ़ावा देती हैं, जिसके कारण बाजार से बाकी कंपनियां बाहर हो जाती हैं। भरी जेब वाली कंपनियां डिस्काउंट और आक्रामक बिक्री नीतियों को अपना कर बाजार पर एकाधिकार बनाती है और इस खेल में अमेजन और फ्लिपकार्ट का जबर्दस्त गठजोड़ होता है। यही नहीं कई मार्केट प्लेस में ये कंपनियां अपनी हिस्सेदारी बना लेती हैं और लाभ के लिए बाजार से प्रतिस्पर्धा को समाप्त करवा देती हैं। अपनी वेबसाइटों पर उन्हीं कंपनियों के उत्पाद को प्रचारित करती हैं या प्रतिस्पर्धा को दूर करने के लिए गहरी छूट प्रथाओं को अपनाती हैं जिनमें इनकी खुद की हिस्सेदारी होती है। सीसीआई ने पिछले जनवरी में दोनों कंपनियों के खिलाफ जांच का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 26 (1) के तहत जांच शुरू करने के लिए “प्रथम दृष्टया“ सबूत हैं।
अभी कुछ महीने पहले ही अमेज़ॅन के ही दस्तावेजों के आधार पर रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिससे पता चलता है कि अमेजॅन कुछ खास विक्रेताओं के एक समूह को वर्षों से बढ़ावा देती आ रही है। इस रिपोर्ट को कम्पीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया यानी सीसीआई ने भी विश्वसनीय माना है और कहा है कि रॉयटर्स की रिपोर्ट कंपनी के खिलाफ मिले सबूतों की पुष्टि करती है। यहां यह बताना आवश्यक है कि फ्लिपकार्ट ने विदेशी निवेश के जरिए डब्ल्यूएस रिटेल में अपनी हिस्सेदारी हासिल की और फिर अपनी शॉपिंग वेबसाइट के जरिए उसी कपंनी का सामान भारी डिस्काउंट पर बेच दिया, जो कानूनन गलत है।
अमेजॅन और फ्लिपकार्ट पर सिर्फ प्रतिस्पर्धा समाप्त कर एकाधिकार स्थापित करने का आरोप नहीं है, बल्कि इन पर विदेशी निवेश कानूनों के उल्लंघन और इनसाइडर ट्र्रेडिंग का भी मुकदमा चल रहा है। पर्वतन निदेशालय यानी ईडी ने फ्लिपकार्ट पर 2009 से 2015 के दौरान विदेश निवेश नियमों के उल्लंघन के 10 नोटिस जारी किए हैं। इस कंपनी पर ईडी ने 10,600 करोड़ के विदेशी निवेश नियमों के उल्लंघन के मामले बनाए हैं।
बहुराष्ट्रीय ई रिटेल कंपनियों पर अनैतिक व्यापार पद्धति अपनाने के एक नहीं दर्जनों आरोप हैं। इसी सिलसिले में यह तथ्य भी उजागर करना जरूरी है कि अमेजॅन ने तथ्यों को छुपाकर अपने पूर्व पार्टनर फ्यूचर ग्रुप को अपनी संपत्ति रिलायंस इंडस्ट्रीज को बेचने से रोकने के लिए अदालती आदेश प्राप्त कर लिया ंऔर इसे अपनी जीत की तरह प्रस्तुत किया। अब सीसीआई ने इसकी भी जांच शुरू कर दी है। सीसीआई का कहना है कि अमेज़ॅन ने तथ्यों को छिपा कर फ्यूचर यूनिट के साथ 2019 के सौदे के लिए मंजूरी मांगी थी, जिसने कानूनी विवाद को जन्म दिया।
प्रतिस्पर्धात्मक नियमों के उल्लंघन का मामला सामने आने के बाद अब अमेज़ॅन ने अपने सबसे बड़े विक्रेता पार्टनर क्लाउडटेल इंडिया के साथ संयुक्त करार खत्म करने का ऐलान किया है। मौजूदा करार मई 2022 है। अमेजॅन ने इनफोसिस के सह संस्थापक नारायण मूर्ति के स्वामित्व वाली कटमरैन वेंचर्स के साथ 2014 में संयुक्त उद्यम स्थापित किया था। लेकिन अबं अमेज़ॅन और एन.आर. अपने रास्ते अलग अलग करने का मन बना चुके हैं।
अमेज़ॅन के खिलाफ भारत में ही नहीं कई देशों में एकाधिकारवादी व्यवहार और श्रमिकों के शोषण का मामला चल रहा है। इनमें अमेज़ॅन के पिछले अधिग्रहणों से जुड़े सैकड़ों मामले की जांच एफटीसी द्वारा की जा रही है तो एंटीट्रस्ट मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला पर अमेरिका की हाउस ज्यूडिशियरी कमेटी भी जांच में जुटी है। इसके अलावा यूरोपीय संघ में नियामक एजेंसियां भी अमेजॅन की कारगुजारियों को खंगाल रही हैं। अमेज़ॅन को न्यूयॉर्क राज्य, न्यूयॉर्क शहर और कैलिफोर्निया के साथ-साथ राष्ट्रीय श्रम संबंध बोर्ड के अधिकारियों से पूछताछ का भी सामना करना पड़ रहा है। आरोप है कि कोरोना महामारी के दौरान श्रमिकों की रक्षा करने में अमेजॅन पूरी तरह विफल रही।
अमेजॅन एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी है जो ई-कॉमर्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, डिजिटल स्ट्रीमिंग और ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर केंद्रित है। यह विश्व की सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की पांच बड़ी कंपनियों में से एक है। अमेरिकी नागरिक जेफ बेजोस ने 5 जुलाई, 1994 को वाशिंगटन के बेलेव्यू में इसकी स्थापना की थी। इस समय अमेजॅ़न से दुनिया भर में 20 करोड़ ग्राहक जुड़े हुए हैं। भारत में अकेले चार लाख से अधिक रिटेलर इसके जरिए अपने कारोबार कर रहे हैं।
वैसे तो फ्लिपकार्ट एक भारतीय कंपनी के नाते अस्तित्व में आई, लेकिन धीरे धीरे इसके पर्वतकों ने अपने शेयर विदेशी कंपनियों को बेचना शुरू कर दिया और 4 मई 2018 को अमेरिकी रिटेल कंपनी वॉलमार्ट ने 15 अरब डॉलर में फ्लिपकार्ट की बड़ी हिस्सेदारी खरीद ली। अब इसका प्रबंधन वॉलमार्ट ईकामर्स करती है।